कविताएं

पछतावा!!!


उस दिन इक कदम उठा लेता तो आज न पड़ता पछताना।
कर लेता थोड़ी सी कोशिश तो आज न हँसता ज़माना।।

कहते हैं अब लोग मुझे मैं हूँ डरपोक ज़माने में।
सुन गर अपने दिल की लेता तो पड़ता न खुद को छिपाना।।

सारी दुनिया दुश्मन है बनी सारा परिवार बना दुश्मन।
गर चल मैं कांटो पर जाता तो होता नया ही फसाना।।

खाली महसूस करूँ खुद को, कोई है नहीं बचा मेरा।
पर उस दिन गर बढ़ जाता तो मेरा भी होता घराना।।

थोड़ी हिम्मत करके गर मैं भीड़ जाता उस दुःख के सैलाब से।
सारे दुःख दूर चले जाते खुशियों का मिलता खज़ाना।।

बुरी परछाई हट जाती नया सवेरा हो जाता।
थोड़ी सी कोशिश कर लेता न भरना पड़ता हर्जाना।।

नई रहे मुझे मिल जाती बुरे रस्ते सब हट जाते।
जो खोया है मैंने दुनिया फिर न पड़ता ऐसे कमाना।।

कैसे खुद को मैं निकालूं इस भयावह भंवर से।

जो कश्ती न चली अब तक उसको आ जाता चलाना।।

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